Disclaimer:
इस लेख का हर धर्म विशेष से लेना देना है, क्योंकि जानवरों की हत्या सब ने मिल कर की है; और जिसने नहीं की, उसकी मृगतृष्णा से, उसे भली भांति परिचित कराया जाएगा। वैसे दिल पर लेने की सख़्त ज़रूरत है, होगा तो कुछ नहीं, जैसा अब तक होता चला आ रहा है; पर क्या पता हृदय परिवर्तन हो जाए; आख़िर सिद्घार्ध भी मृत्यु की ही बात पर बुद्ध हो गए थे। इसी उम्मीद के साथ मैं भी अपना लेख प्रारंभ करता हूं ।
दूध: हल्दी वाला औषधि, शिलाजीत वाला ताकतवर, केसर वाला गरम, नींबू वाला पनीर, खटास वाला दही और बोर्नविटा वाला रिंकू पिंकू का प्रिय। जय हो दूध, और उसकी महिमा। पर कभी सोचा, यह जो सुबह सुबह वेरका, अमूल, मदर डेयरी, आदि के बूथों पर लाइन पर लग जाते हो; कभी सोचा है कि जितनी सरलता से दूध मिलता है, उतनी ही मुश्किल आन पड़ती है, उन पशुओं के जीवन पर जो हमारी इस दूध की तृष्णा के कारण जन्म लेते हैं। जी हां, मनुष्यों की तरह जानवरों में भी गर्भधारण करने के उपरांत ही दूध आता है। मैं जानता हूं, आपके मन में यह प्रश्न उत्पन्न हो चुका होगा; गर्भधारण करने से तो जीवन की उत्पत्ति होती है, तो मैं काहे मृत्यु की बातें कर रहा हूं। कारण है, तो समझिए आप में दूध की तृष्णा जागृत हुई, आप उठ के गए दूध के बूथ पर, बूथ वाले ने कंपनी से दूध मंगवा कर रखा हुआ होता है, कंपनी दूध लेती है पशुपालकों से, पशुपालक को दूध मिलता है पशुओं से, और इसी चक्कर में पशु को धारण करना पड़ता है गर्भ, अब जब गर्भधारण किया है, तो जन्म तो होगा। यदि, हुई मादा तो वो आगे चलकर इसी काम में लग जाएगी, तृष्णा और पूर्ति का कार्यक्रम यूंही चलता रहेगा; पर यदि, हुआ नर तो, क्या होगा ?
न बेचारा दूध देगा, न अब हल चलाने की प्रथा है, और गर्भधारण के लिए हमको वैसे भी हाइब्रीड चाहिए, तो वो बेचारा किधर जाएगा; केवल और केवल क़त्लखाने में ।
और आपकी इसी दूध की तृष्णा के कारण ही भारत सबसे ज्यादा बीफ एक्सपोर्ट करने में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है, और लगभग लगभग 20% हिस्सेदारी विश्व पटल पर रखता है। जो हो सकता है, आने वाले समय में बढ़कर 30% हो जाए, और हम नंबर एक हो जाएं।
और यह तब है, जब बीफ के नाम पर इतने हंगामे देश भर में हो चुके हैं क्योंकि जानवर कोई भी नहीं बचाना चाहता है, सब अपने अपने विशेष जानवर के लिए लड़ रहे हैं और यदि दोनों समुदाय देसी नस्ल की गाय की हत्या पर एक भी हो जाएं तो भैंस, सांड, बैल और बाकि सबका क्या ? यही हाल देश में जानवर संरक्षण करने वाली संस्थाओं का भी है ।
यह हाल तो सिर्फ अभी दूध देने वाले जानवरों का है, बाकि मुर्गा, बकरा तो छोड़ ही दीजिए।
तो कम से कम चलिए बचाएं, दूध देने वालों जानवरों को ताकि कम से कम हमारी दूध की तृष्णा, किसी की रक्त से पूरी न हो।
तो क्या किया जाए:
१. दूध देने वाले जानवरों के मल और मूत्र से नए नए उत्पादों को उत्पादन।
२. उनकी विक्री और निर्माण के लिए सब्सिडी ।
३. खाद के लिए तय मूल्यों पर मल और मूत्र की विक्री।
४. जैविक खेती को बढ़ावा।
५. और किसान सम्मान निधि की तरह दूधिया पशु-पालन निधि ।
मन की बात:
मैं कोई समाज सुधारक नहीं हूं, न कोई एक्टिविस्ट, यह ख्याल तो बस तब आया, जब मेरे घर में भी गोदान के हीरा और मोती आए, बेचारे तब से लेकर अब तक लताड़े ही जा रहे हैं। बाकि जानवरों से मित्रता कर के देखो, क्या पता?, मित्र के समान अन्य जानवरों को खाते समय थोड़ी दया आ ही जाए। यदि आप मांसाहारी है, तो हो सकता है, किसी दिन आपको इस बात का एहसास हो, एहसास हो आपनी क्रूरता का, जैसे होता है किसी बुद्ध पुरुष को बुद्ध होने से पहले। पर यदि आप शाकाहारी हैं, तो शायद अनभिज्ञ रहें जीवन भर इन छोटी छोटी बातों से ।
Amazing..beautifully expressed the msg through words
ReplyDeleteThanks 😊
Deleteउच्च विचार
ReplyDeleteउच्च विचार
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻
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