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मांसाहार और भुखमरी


Disclaimer: चलिए दूध से अब मांसाहार की ओर बढ़ते हैं, पिछले लेख का यह अगला भाग है, यदि पिछला नहीं पढ़ा है तो पढ़ लें। 

जैसा कि शीर्षक है,"मांसाहार और भुखमरी": सुनने में थोड़ा अटपटा और समझने में दिमाग के खूब घोड़े दौड़ाएगा ।
United Nation: Food and Agriculture Organization, नाम नहीं सुना है तो गूगल कर लें, कुछ जानकारियां समय-समय पर साझा करता है हमारे साथ। 
तो कुछ आंकड़े आपके साथ सांझा करते हुए आपको यह बताने में बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि क्या आप जानते हैं कि कितने प्रतिशत खेती का हिस्सा इंसान को खाना पहुंचाने के काम आता है?
चलिए मन ही मन विचार करें, कर लिया ?
80%, जी नहीं।
60%, जी नहीं।
50%, जी नहीं।
मात्र 23%, क्यों चक्करा गए?
जी, हां !  मात्र कुल खेती का 23% ही इंसान को खाने के रूप में मिलता है।

यदि मैं उदाहरण के रूप में कहूं कि किसी ने 100 किलो गेहूं की खेती की तो उसमें मात्र 23% यानि 23 किलो ही इंसान को भोजन के रूप में मिलता है। तो अब प्रश्न यह उठता है कि बाकि 77% कहां जाता है ।

वह जाता है मीट और डेयरी फार्म में, हम भुखमरी का बड़ा रोना रोते हैं कि इतने लोग भूखे मरते हैं; सरकार कुछ नहीं करती। 
पर प्रश्न तो कुछ और है भैया, क्या आपकी जीभ मानती है? क्या आपका मांसाहार के प्रति रुझान कभी कम हुआ है?

आशा है, अब समझ गए होंगे इस बात को कि इतने लोग भूखे मर रहे हैं क्योंकि उनके लिए खाना नहीं है, क्योंकि उनके हिस्से का खाना तो जानवरों को खिलाया जाता है ताकि आप जानवरों को खा सकें। अब 1 किलो मास के लिए उस जानवर को कम से कम भी 10 से 20 किलो अनाज खिलाना पड़ता है। यदि आप केवल शाकाहारी हैं तो आप सिर्फ दाल सब्जी खाएंगे, पर यदि आप मांसाहारी है तो मास तो खाएंगे ही खाएंगे, ना जाने कितनों के हिस्से का भोजन भी खाएंगे, जो उस मास के रूप में रूपांतरित हुआ है। यदि 23% का भी हम दोगुना भी इंसानों को पहुंचा पाते तो शायद आज इतने लोग भूख से नहीं मरते।

और जिन शाकाहारियों को लगता है कि मैं केवल सिर्फ दूध पीता हूं, तो उनके लिए विशेष जानकारी यह है कि मास और डेयरी दोनों एक दूसरे के पूरक है। उदाहरण के रूप में जब कोई इंसान गाड़ी लेता है, तो पहले तो वह उसका पूरा प्रयोग करता है, और फिर जब मन भर जाता है, तो बेचने की सोचता है, और बेचते हुए भी सोचता है कि रीसेल वैल्यू तो मिल ही जाए।  यही आचरण हमारा जानवरों के प्रति भी रहा है, पहले वह दूध दे, और जब दूध देना बंद कर दे; तो कम से कम मास का ही पैसा देकर जाए। यदि आज किसी विशेष जानवर का मांस बंद हो जाए, तो कल उसके दूध की कीमत बढ़ जाएगी; और यदि किसी विशेष जानवर का दूध बंद कर दिया जाए, तो कल को उसके मांस भक्षण करने वालों को दिक्कत शुरू हो जाएगी।


मन की बात:
जलवायु परिवर्तन तो छोड़ो, कम से कम जानवरों के साथ साथ जो इंसानों को भूख से मारने का काम आपकी मास की तृष्णा करती जा रही है; उस पर ही थोड़ा लगाम लगा लें। 
पर इन सबमें मैं उन लोगों को बिल्कुल भी नहीं रखता, जो अपने घर पर जानवर रखते हैं, उनकी खूब देखभाल करते हैं, उनसे परिवार के सदस्य के भांति वात्सल्य, करूणा, प्रेम करते हैं। जिनके यहां वह जन्म से लेकर मृत्यु तक रहता है; पर विरले ही होते हैं ऐसे लोग, नमन 🙏🏻 ।

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