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सामाजिक समरसता: भाषण नहीं भंडारा


Disclaimer: जो कोई भी आपसे यह कहता है कि वह आपको किसी समूह में जोड़ कर, किसी पार्टी में जोड़कर या किसी तथाकथित आंदोलन में जोड़कर समाज से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव को समाप्त कर देगा तो व्यक्ति आपको केवल और केवल अपने हितों को आप के जरिए साध रहा है । समाज में भेदभाव मिटाना और समरसता लाने के लिए किसी भाषण की, किसी नेता की कोई जरूरत नहीं है जरूरत है सिर्फ और सिर्फ भंडारों की और आपकी उसमें सहभागिता की ।

हाल ही में हमने निर्जला एकादशी का त्यौहार मनाया या जिसे हम बचपन से ही छबील वाला दिन मनाते आ रहे हैं, CORONA संकट की इस घड़ी में सब बन्द था पर यदि नहीं होता तो आपको देखने को मिलती पानी की छबीलें और कुछ जगह पर लंगर और भंडारे भी ।
पर बतौर समाज हमें इन छबीलों, लंगरों और भंडारों आवश्यकता सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि इससे केवल किसी भूखे प्यासे का पेट भरेगा। यह छबीलें, लंगर और भंडारे समाजिक संरचना को मजबूत करने और आपस के भेद मिटाने में बहुत सहायक होते हैं। ऐसी मान्यता है यदि आपको अपने परिवार को इक्कठा रखना है तो उन्हें साथ में भोजन करने की आदत डालें और यदि आपको समाज को संगठित करना है तो आप उन्हें साथ में भोजन करने की आदत डालनी चाहिए और जब लोग बिना किसी जातिगत, आर्थिक और सामाजिक भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करेंगे तो सामाजिक समरसता के लिए कोई विशेष कार्य करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।
इसलिए कभी भी मौका मिले तो इन छबीलों, लंगरों और भंडारों का खूब आनंद उठाएं, एक तो यह आपको दूसरे इंसान को बिना किसी भेद भाव के इंसान के रूप में स्वीकृति देने में तो मदद करेगा ही, आपके मन से दूसरे के प्रति मानसिक घृणा और उसको स्वयं से निम्न मानने की घृणित मानसिकता से मुक्त तो करेगा ही अपितु आपके मन में भी समाज के लिए कुछ करने के भाव को बढ़ावा देगा ।

मन की बात:  
तथाकथित विचारक, नेतागण और समाजसेवी बड़े-बड़े भाषण तो दिए 73 साल में आपसी भेद ना मिटा पाए, तो आओ कुछ नया प्रयोग करें । आओ साथ मिल बैठकर खाएं-पिएं और आपस के भेदभाव को समाप्त कर सामाजिक समरसता की ओर बढ़े ।


Comments

  1. बहुत अच्छा पैगाम है कार्तिक बंधु अगर ऐसा हो जाए तो क्या कहने । इंसान को इंसान के‌ रूप में स्वीकृति ही सबसे हितकर कार्य है और वो भी बिना किसी भेदभाव के ।

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