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Showing posts from 2020

Indian News Channels: The Modern Daily Soap Operas

If you are tired with tiresome and cliche soap operas, their never ending stories, it's time to switch off and shift to Indian News Channels. In the ocean of their genres: Thriller, Suspense, Drama, Action, Comedy, and Mystery fish can be found swimming around. Sometimes for special TRP purpose or on weekends they have: Crime Thriller, Disaster Thriller, Psychological Thriller, and Techno Thriller. And don't worry if you miss your daily operas they have one special dedicated show so that you can't miss your favourites. Don't forget about their tv debates: their scripted catfights and never-ending journey like Sas Bhi Kbhi Bahu Thi , Kahani Ghar Ghar ki , and Kasuti Zindagi Ki never let you feel that you have already shifted. After having a drink of this desensitised unwitting drug if you still feel your future is in safe hands, they have a palm reading show too. But every cloud has a silver lining and the best thing about Indian media houses is they are bia...

मांसाहार और भुखमरी

Disclaimer: चलिए दूध से अब मांसाहार की ओर बढ़ते हैं, पिछले लेख का यह अगला भाग है, यदि पिछला नहीं पढ़ा है तो पढ़ लें।  जैसा कि शीर्षक है,"मांसाहार और भुखमरी": सुनने में थोड़ा अटपटा और समझने में दिमाग के खूब घोड़े दौड़ाएगा । United Nation: Food and Agriculture Organization, नाम नहीं सुना है तो गूगल कर लें, कुछ जानकारियां समय-समय पर साझा करता है हमारे साथ।  तो कुछ आंकड़े आपके साथ सांझा करते हुए आपको यह बताने में बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि क्या आप जानते हैं कि कितने प्रतिशत खेती का हिस्सा इंसान को खाना पहुंचाने के काम आता है? चलिए मन ही मन विचार करें, कर लिया ? 80%, जी नहीं। 60%, जी नहीं। 50%, जी नहीं। मात्र 23%, क्यों चक्करा गए? जी, हां !  मात्र कुल खेती का 23% ही इंसान को खाने के रूप में मिलता है। यदि मैं उदाहरण के रूप में कहूं कि किसी ने 100 किलो गेहूं की खेती की तो उसमें मात्र 23% यानि 23 किलो ही इंसान को भोजन के रूप में मिलता है। तो अब प्रश्न यह उठता है कि बाकि 77% कहां जाता है । वह जाता है मीट और डेयरी फार्म में, हम भुखमरी का बड़ा रोना रोते हैं कि इतने लोग भू...

दूध और क़त्लखाने

Disclaimer:  इस लेख का हर धर्म विशेष से लेना देना है, क्योंकि जानवरों की हत्या सब ने मिल कर की है; और जिसने नहीं की, उसकी मृगतृष्णा से, उसे भली भांति परिचित कराया जाएगा। वैसे दिल पर लेने की सख़्त ज़रूरत है, होगा तो कुछ नहीं, जैसा अब तक होता चला आ रहा है; पर क्या पता हृदय परिवर्तन हो जाए; आख़िर सिद्घार्ध भी मृत्यु की ही बात पर बुद्ध हो गए थे। इसी उम्मीद के साथ मैं भी अपना लेख प्रारंभ करता हूं । दूध: हल्दी वाला औषधि, शिलाजीत वाला ताकतवर, केसर वाला गरम, नींबू वाला पनीर, खटास वाला दही और बोर्नविटा वाला रिंकू पिंकू का प्रिय। जय हो दूध, और उसकी महिमा। पर कभी सोचा, यह जो सुबह सुबह वेरका, अमूल, मदर डेयरी, आदि के बूथों पर लाइन पर लग जाते हो; कभी सोचा है कि जितनी सरलता से दूध मिलता है, उतनी ही मुश्किल आन पड़ती है, उन पशुओं के जीवन पर जो हमारी इस दूध की तृष्णा के कारण जन्म लेते हैं। जी हां, मनुष्यों की तरह जानवरों में भी गर्भधारण करने के उपरांत ही दूध आता है। मैं जानता हूं, आपके मन में यह प्रश्न उत्पन्न हो चुका होगा; गर्भधारण करने से तो जीवन की उत्पत्ति होती है, तो मैं काहे मृत्यु...

श्याम

देख चित्र तुम्हारा मोहन राधा नैन मेघ श्याम छाए ।। होवे बरखा रिमझिम रिमझिम, भीगी ना राधा भीगा श्याम जाए ।। भोर भई लूं मन अपना जग से जोड़, क्या करूं उस क्षण रे कान्हा, जब शाम हो रंजित श्याम आए।। विरह छाए घनघोर घने नृत्य करे अश्रुमोर, जो रूठी राधा रणछोड़ से, फिर राधा मनाने श्याम आए ।। देखा स्वप्न सहसा बंध रही बंधन की डोर, सुलादो सैकड़ों सदियां, टूट स्वप्न न श्याम जाए ।। तेरा जाना सांवरे मन निधिवन गया उजाड़, खिले पुष्प अब तब ही, जब भंवरा श्याम आए ।। तुझे ढूंढने को घूम दिए मंदिर कंदरा पहाड़, जो खोजा आप में, दर्श देने को श्याम आए ।।

सामाजिक समरसता: भाषण नहीं भंडारा

Disclaimer: जो कोई भी आपसे यह कहता है कि वह आपको किसी समूह में जोड़ कर, किसी पार्टी में जोड़कर या किसी तथाकथित आंदोलन में जोड़कर समाज से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव को समाप्त कर देगा तो व्यक्ति आपको केवल और केवल अपने हितों को आप के जरिए साध रहा है । समाज में भेदभाव मिटाना और समरसता लाने के लिए किसी भाषण की, किसी नेता की कोई जरूरत नहीं है जरूरत है सिर्फ और सिर्फ भंडारों की और आपकी उसमें सहभागिता की । हाल ही में हमने निर्जला एकादशी का त्यौहार मनाया या जिसे हम बचपन से ही छबील वाला दिन मनाते आ रहे हैं, CORONA संकट की इस घड़ी में सब बन्द था पर यदि नहीं होता तो आपको देखने को मिलती पानी की छबीलें और कुछ जगह पर लंगर और भंडारे भी । पर बतौर समाज हमें इन छबीलों, लंगरों और भंडारों आवश्यकता सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि इससे केवल किसी भूखे प्यासे का पेट भरेगा। यह छबीलें, लंगर और भंडारे समाजिक संरचना को मजबूत करने और आपस के भेद मिटाने में बहुत सहायक होते हैं। ऐसी मान्यता है यदि आपको अपने परिवार को इक्कठा रखना है तो उन्हें साथ में भोजन करने की आदत डालें और यदि आपको समाज को संगठित करना...

भारत: नशा और अध्यात्म

Disclaimer: मेरा किसी भी प्रकार के नशे से तो वैसे कोई दूर-दूर तक का लेना देना नहीं है और ना ही मैं किसी प्रकार का नशा करता हूं, पर मुझे नशे करने वाले व्यक्तियों से भी किसी तरह की आपत्ति नहीं है जब तक वह मेरी अपनी निजता का हनन न करें । किस्सा:  अभी हाल ही में मुझे एक पहाड़ी क्षेत्र में विचरण करने का मौका मिला। जब मैं अपने मित्र के यहां पहुंचा तो वहां कुछ बुजुर्ग लोग बैठकर हुक्का पी रहे थे। तभी एक बुजुर्ग आदमी ने मुझसे भी पूछा: बेटा हुक्का पियोगे ? मैंने फट से जवाब दिया: मैं नहीं पीता जी। तो फिर बुजुर्ग आदमी ने जवाब देते हुए कहा: पी लो बेटा बीड़ी से अच्छा होता है । मेरे मन में एक विचार शून्य अथवा अंधकार की भांति प्रवाहित हुआ और विचार आया कि मुझे एक लेखक होने नाते इस संदर्भ में कुछ लिखना चाहिए ताकि स्थिति थोड़ी स्पष्ट हो सके इसलिए  यह लेख लिख रहा हूं ताकि एक सामंजस्य स्थापित कर पाऊं नशा करने वालों में और न करने वालों में । आज के सामाजिक परिदृश्य में भारत मुझे एक झूले के भांति अनुभूति देता है, जो झूल रहा है नशा करने वालों और न करन...

Savvy's Savvy

Hidden pearls to express, Ire, aching, annoying, irritation and stress, keep as tranquil as Matterhorn**, Deep-down as a new child born, And the unhelpful me, Angling remedies in google’ sea, The perfect “Sanjeevani”, May be banana or honey, Agonizing to see you tussling, Keep moving keep hustling, The delight of motherhood, And the worth that only you have understood, O Captain! of maternity, The spring of upspring even after eternity, You are the real shero***, Without a regalia in shiro****, Mother Nature is your synonym, Both delivers, nurtures and are incarnated for that jum*****, But if one’s potency is adored why another’s is taboo, If one gets cheers why another one gets boo, But remember one’s savvy is incongruent without other’s, Halt your prejudice after all they both are mothers. ** Matterhorn= A mountain in Switzerland who recently displayed Indian flag *** Shero= representing she as a hero **** Shiro = white ( japan...

शादी: महिला अत्याचार की सच्ची कहानी।

  Disclaimer: मेरा लेख का किसी धर्म , जाति और संप्रदाय से कोई लेना देना नहीं है क्योंकि जिसको भी या जिस भी धर्म , जाति और संप्रदाय को जब भी मौका मिला है उसने महिलाओं के शोषण की कोई कसर नहीं छोड़ी है। क्यों और कैसे वह आप आगे स्वयं पढ़ेंगे भी और जानेंगे भी वैसे यदि कोई उदाहरण याद आया हो तो पास रखना और कोशिश करना कि आप कभी भी किसी स्त्री पर उसे व्यवहारिक रूप से सजीव न करें। पर हां इस लेख का संबंध हर एक जीवित और मृत व्याहता से है जिसने एक दो या जितनी भी बार व्याह किया हो ( आख़िर उसकी मर्ज़ी की भी कोई कदर करो)। शादी व्याह , यूं तो बहुत किस्म के हैं पर हम यहां आज के चलन के अनुसार मैं दो किस्म के विवाह की ही बात करूंगा । १. Love Marriage/ प्रेम विवाह २. Arrange Marriage/ व्यवस्था विवाह युवाओं को तवज्जो देते हुए पहले हम प्रेम विवाह / love marriage की बात करेंगे जिसमें आज कल न प्रेम है और न love । Every love affair is a failure, without exception~ osho मैंने ओशो को quote इसीलिए किया ताकि मैं यह कह सकूं कि मैं उनके इस विचार से सहमत नहीं हूं क्योंकि अब इस विचार पर ...