अक्सर बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों पर बढ़े-बढ़े पोस्टरों पर नामर्दी, स्वप्न दोष, और SEX POWER बढ़ाने वाले पोस्टर दिखते हैं, यदि महिलाएँ इतनी ही कमज़ोर हैं तो क्यूँ इन दवाइयों की जरूरत हमेशा पुरुषों को ही पड़ती है?
क्यूँ खून की मात्रा का अंतर महिलाओं में १२ और पुरुषों में १४ का होता है?
हम में से कितने हैं जो बाएँ हाथ से लिख सकते हैं, जब हम बचपन में कक्षा में किसी को लिखते देखते थे तो पता नहीं क्यूँ हम उसको अपने से अलग मान लेते थे और इसी चीज़ की दूरदर्शी सोच का असर भारतीय माता-पिता में दिखता है जो मार-मार के ही सही अपने बच्चों को दाएँ हाथ लिखना सिखा ही देते हैं, इसी कारण आज भी १०० में से मात्र १० बच्चे ही बाएँ हाथ के मिलते हैं परन्तु जो गोर करने वाली बात यह है कि इनमें महिलाएँ मात्र नाम की भी नहीं हैं क्योंकि भारतीय परंपराओं के अनुसार शुभ काम हमेशा दाएँ हाथ से किया जाता है, “और कल को लड़की ससुराल जाएगी तो लोग क्या कहेंगे ?” इसी एक प्रश्न ने मुझे लगता है लड़कियों की आज़ादी को छीन ने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
जब यह लड़कियाँ १०-१२ साल की उम्र में होती है जिसे हम भारतीय टीवी पर “उन दिनों” के नाम से, शास्त्रों में मासिक धर्म और अंग्रेजी में MENSURATION, PERIODS के नाम से हम जानते हैं। जिसके बारे में आज भी ६०-७० % भारतीय पुरुष मानते हैं कि यह कोई सियाही जैसी चीज़ है, अक्सर टीवी विज्ञापन पर कुछ ऐसा ही दिखाया जाता है और कुछ मेरे जैसे मासूम भी होंगे ।
जिन्होंने पहली SANITARY NAPKINS का विज्ञापन देखा होगा तो समझा होगा, सियाही के बर्तन से गिरी हुई सियाही साफ करने के लिए कोई नया आविष्कार हुआ होगा। जिस प्रकार से विज्ञापनों में “उन दिनों ” की बात की जाती है, लगता है यही वो कारण रहा होगा जिसके चलते महिला-पुरूष में भेद भाव किया जाता होगा क्योंकि इनके तो “ उन दिनों ” वाले दिन आते हैं पर हमारे तो आते नहीं। “उन दिनों” में तो भेदभाव का स्तर छुआ- छूत के स्तर से भी दो कदम आगे हो जाता है, इनकी मुख्य शिकार युवा लड़कियाँ होती हैं जिन्हें संस्कारों की आड़ में हर चीज से दूर दिया जाता है फिर चाहे रसोई हो या मन्दिर। कुछ जगह मासूमियत इतनी प्रखर होती है की इनके स्कूल जाने पर भी रोक लगा दी जाती है।
फिर उम्र आती है १५-२० वर्ष की, हम जानते हैं।MENSTRUATION की वजह से अक्सर HORMONIC CHANGES आते हैं, पर इसी चीज को यदि भारतीय लड़कों के अनुसार प्रभाषित करें “ यार इनके जब PERIODS होते हैं नए-नए शुरू तो इनको बहुत चुल्ल मचती है, तब इनको कोई चाहिए होता है...” और यह तब है जब उड़ीसा जैसे आदिवासी क्षेत्र में लड़कियों करे मासिक धर्म धारण करने पर उत्सव मनाया जाता है। असम के प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या देवी में माँ की योनी रूप की पूजा की जाती है। तो हमारे इस तथा-कथित आधुनिकीकरण का क्या महत्व ?अक्सर आज भी एक लड़की के चरित्र को दर्शाने के लिए आज भी अजीबो-ग़रीब तरीके इस्तेमाल में लाए जाते हैं, एक लड़की अगर देर रात बाहर रहती है तो क्यूँ उसके बारे में एक ही राय बना ली जाती है ? चाट-पापड़ी की दुकान पर यदि कोई लड़की चाट-मसाला मांग लेते है या तीखा पानी मांग लेते है तो क्यूँ हम एक ही बात सोचते हैं?
अगर किसी लड़की के नाखून बड़े हैं तो वो शरीफ़ है और यदि छोटे हैं तो वो ग़लत काम करती होगी, जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ (FEMALE MASTURBATION) की और यदि वो करती भी है तो इसमें दिक्कत क्या है ?मुझे नहीं पता हम किस संस्कृति या संस्कारों की दुहाई देते आ रहे हैं, पर अब यह भारत की विडंबना है की यहाँ एक लड़की का कोई भाई हो ना हो, पर कइयों के भाई की प्रीयतम् बन के कइयों की भाभी अवश्य बन जाती है और कुछ इनसे भी आगे होते हैं उनके लिए लड़कियाँ “सविता भाभी” या हस्तमैथुन (MASTURBATION) तक ही सीमित हो जाती है । ख़ास कर स्कूल से निकलने के बाद से शादी तक के बीच का समय भारतीय माता-पिता को सर्वाधिक चिंतित करता है, इस समय इन्हें “कमज़ोरी की कड़ी में” पूरी तरह बांध दिया जाता है और मान लिया जाता है कि इनसे कमज़ोर कोई भी नहीं है इस दुनिया में... तब किसी SUPER HERO की तरह इनकी सुरक्षा के लिए एक रोशनी की किरण बन कर आते हैं GIRLS’ HOSTEL जिनकी प्रबंधक अक्सर विधवा या तलाक़शुदा औरतें होती हैं इसके पीछे का कारण क्या है मुझे आज तक समझ नहीं आया?
इन GIRLS’ HOSTEL के नियमों से हम सब बखिफ़ है पर मेरा प्रश्न भारत के मानवाधिकार से है जिनको इन छात्रों की स्थिति पर क्यूँ तरस नहीं आता? जो भारत में कासाब और अफ़जल जैसे आतंकवादियों के मानवाधिकार पर तो बोलता है पर क्यूँ इन छात्रों के हालात पर मनमोहन सिंह हो जाता है ?इसी उम्र के पड़ाव में इन लड़कियों को इश्क़, मोहब्बत, प्रेम होता है जो भारत की जाट बिरादरी के लिए खून करने से कम अपराध नहीं है जिस कारण अक्सर जोड़ों शव पेड़ पर लटके पाए जाते हैं, जिन्हें BOLLYWOOD रामलीला, इश्कजादे बना कर श्रध्दांजली देता है। जो “शरीफ़ घर की लड़कियों ” छात्रावास के नियमों का पालन करते करते जीवन निर्वाह करती है शादी तक virgin रहती है अक्सर भारतीय लड़कों की पहली पसंद होतीं है, माँ-बाप उनके लिए एक अच्छा लड़का देख कर उनकी शादी करवा देते हैं। भारतीय शादियों के कुछ पहलू जिस कारण लगता है पूरा भारत एक है :
१. लड़की कुवारी (VIRGIN) होनी चाहिए शादी में दहेज़ से पहले प्राथमिकता इस पर अक्सर होती है जिसे शादी के बाद सफ़ेद चादर के लाल होने के जरिए जाना जाता है और कभी कभी इससे अजीब तरीके भी इस्तेमाल में लाए जाते है।
२. लड़की अपने प्राणनाथ पति परमेश्वर का हर कहना माने चाहे पति शादी के समय दिए वचनों को कभी आचरण में ना भी लाए तब भी वो परमेश्वर तुल्य है शायद इसी कारण भारत में महिलाओं को स्त्री के संस्कारों की दुहाई देने वालों के लिए DOMESTIC VOILENCE ( घरेलू हिंसा ) और MARITIAL RAPE ( वैवाहिक बलात्कार ) जैसे शब्द अस्तित्व में ही नहीं होते। अपने बेटे के लिए लड़की तो चाहिए पर अपने घर में यदि लड़की पैदा हो तो सांप क्यों लोट जाता है?
क्यूँ अक्सर देखा जाता है लोग पांच-पांच बच्चे कर देते है क्योंकि उनके यहाँ पहले चार बच्चे लड़कियाँ थी ।महिलाओं की कमज़ोरी दर्शाने के लिए कुछ शब्दावली भी हैं जो अक्सर महिलाओं की ताजपोशी करने में लाई जाती है उनमें से सबसे उच्चतम उपाधि है रंडी (PROSTITUTE) शब्द।
जो औरतें किसी मजबूरी में आकर अपना जिस्म बेचती हैं उनके लिए नहीं, अक्सर वो औरतें जो समाज की कुरीतियों का विरोध करती हैं उनके लिए यह ज्यादा इस्तेमाल में लाया जाता है फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम। अरे, समाज तो छोड़िए अक्सर खुद को अपनी प्रियतम् का प्रियबर बताने वाला वो तथाकथित प्रेमी भी अपनी प्रेमिका द्वारा अपनी शारीरिक और मानसिक जरूरत पुरी ना होने पर उसे भी जब चार दोस्तों के बीच में रंडी कहता है तब वो क्यूँ भूल जाता है कि कोई लड़की उसे भी राखी बाँधती होगी। जब भी मैं इस शब्द को सुनता हूँ तो मुझे लगता है VIRGIN के अलावा इस शब्द पर भी
भारत एक है। हमारा समाज तो वैसे भी इनको कमज़ोर मानता ही है तभी हम बस में अक्सर खूबसूरत लड़कियों को देख कर अपनी सीट छोड़ने को आतुर होते हैं जबकि उसी बस में अक्सर गर्भवती महिलाएँ खड़े हो कर सफ़र किया करती हैं। आज कल बहुत से बैंकों में जब आप खाता खोलते हैं तो पिता जी के नाम की जगह माँ का नाम पूछा जाता है तो शायद से हम में से बहुत को लगता होगा कि देश बदल रहा है पर सच्चाई कुछ ओर है क्योंकि विदेशों में तलाक़ का चलन बहुत अधिक है, एक साल में लोगों को दो से तीन पिता जी भी देखने को मिल जातें हैं और जिस तरह भारतीय बेवकूफों की तरह विदेशियों की राह पर चलते हैं यह बहुत जल्दी भारत में भी देखने को मिल सकता है तो बहुत अच्छा है कि भारतीयों को भी इस व्यवस्था से महिला सशक्तिकरण के नाम पर ही अवगत करवाया जाए।
ऐसा ही कुछ महिला आरक्षण के नाम पर भी किया जाता है जब किसी राजनीतिक पार्टी को लगता है कि किसी क्षेत्र में उसकी पार्टी का पुरुष नेता नहीं जीत सकता तो फिर महिला सशक्तिकरण का ट्रम्प कार्ड खेला जाता है, वोट बैंक के लिए महिला तुष्टिकरण को महिला सशक्तिकरण बनाया जाता है और हमें लगता है देश बदल रहा है। कमज़ोरी और नहीं, कमज़ोरी तो है कहीं ना कहीं हमारी विचार शक्ति में, हमारे आचरण में और इसी के चलते आज पूरा समाज धृतराष्ट्र बन चुका है। यह भारतीय समाज की सच्चाई है और इस सच्चाई को सहन करते हुए भी पर्वत मेरु के समान अडिग खड़ी होती हैं भारतीय महिलाएँ को कौन कह सकता है कि “भारतीय महिलाएँ कमज़ोर हैं”, पर सदियों से इनके साथ यह सब कुछ होता चला आ रहा है क्योंकि आज भी हम मानते हैं कि “ भारतीय महिलाएँ कमजोर हैं ”।
मन की बात :
मैं कोई लड़की नहीं हूँ और न मैं आपकी समस्याओं को समझ सकता हूँ इस लेख में साँझा की गए विचारों को अवश्य मैंने शब्दों का आकार दिया गया है पर मुझ तक यह शब्द आप ही ने मेरी माँ, बहन, प्रेमिका और मित्र बन कर पहुंचाएं हैं और यदि कुछ छूटा हो तो सुझाव का विकल्प हमेशा खुला है। यह लेख लिखने का उद्देश्य किसी का विरोध करना नहीं अपितु विद्रोह से अवगत करवाना है, विद्रोह कुरीतियों के खिलाफ़, विद्रोह उनके भी खिलाफ़ जो अक्सर जन्तर-मंतर पे खड़े हो के चीख़ते रहते है महिला-पुरुष सामान है पता नहीं क्यूँ उनको इतनी सी बात समझ नहीं आती कि प्रकृति ने कुछ सोच-समझ ही शिव-सती का, आदम-ईव को संरचना दी होगी ? क्यूँ हम एक स्त्री को एक इंसान नहीं मानते ? हम मानते भी हैं तो महज देवी जोकि केवल त्योहारों के दिन ही याद आती है और जिस दिन कोई पुरुष हो जाए नास्तिक तो भाड़ में जाए देवी फिर तो वो इंसान तुल्य भी नही रहती और फिर होता है केवल और केवल शोषण !! यह तो शुरुआत है, अभी तो पूरा रास्ता तय करना है “विरोध से विद्रोह” तक ।
क्यूँ खून की मात्रा का अंतर महिलाओं में १२ और पुरुषों में १४ का होता है?
हम में से कितने हैं जो बाएँ हाथ से लिख सकते हैं, जब हम बचपन में कक्षा में किसी को लिखते देखते थे तो पता नहीं क्यूँ हम उसको अपने से अलग मान लेते थे और इसी चीज़ की दूरदर्शी सोच का असर भारतीय माता-पिता में दिखता है जो मार-मार के ही सही अपने बच्चों को दाएँ हाथ लिखना सिखा ही देते हैं, इसी कारण आज भी १०० में से मात्र १० बच्चे ही बाएँ हाथ के मिलते हैं परन्तु जो गोर करने वाली बात यह है कि इनमें महिलाएँ मात्र नाम की भी नहीं हैं क्योंकि भारतीय परंपराओं के अनुसार शुभ काम हमेशा दाएँ हाथ से किया जाता है, “और कल को लड़की ससुराल जाएगी तो लोग क्या कहेंगे ?” इसी एक प्रश्न ने मुझे लगता है लड़कियों की आज़ादी को छीन ने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
जब यह लड़कियाँ १०-१२ साल की उम्र में होती है जिसे हम भारतीय टीवी पर “उन दिनों” के नाम से, शास्त्रों में मासिक धर्म और अंग्रेजी में MENSURATION, PERIODS के नाम से हम जानते हैं। जिसके बारे में आज भी ६०-७० % भारतीय पुरुष मानते हैं कि यह कोई सियाही जैसी चीज़ है, अक्सर टीवी विज्ञापन पर कुछ ऐसा ही दिखाया जाता है और कुछ मेरे जैसे मासूम भी होंगे ।
जिन्होंने पहली SANITARY NAPKINS का विज्ञापन देखा होगा तो समझा होगा, सियाही के बर्तन से गिरी हुई सियाही साफ करने के लिए कोई नया आविष्कार हुआ होगा। जिस प्रकार से विज्ञापनों में “उन दिनों ” की बात की जाती है, लगता है यही वो कारण रहा होगा जिसके चलते महिला-पुरूष में भेद भाव किया जाता होगा क्योंकि इनके तो “ उन दिनों ” वाले दिन आते हैं पर हमारे तो आते नहीं। “उन दिनों” में तो भेदभाव का स्तर छुआ- छूत के स्तर से भी दो कदम आगे हो जाता है, इनकी मुख्य शिकार युवा लड़कियाँ होती हैं जिन्हें संस्कारों की आड़ में हर चीज से दूर दिया जाता है फिर चाहे रसोई हो या मन्दिर। कुछ जगह मासूमियत इतनी प्रखर होती है की इनके स्कूल जाने पर भी रोक लगा दी जाती है।
फिर उम्र आती है १५-२० वर्ष की, हम जानते हैं।MENSTRUATION की वजह से अक्सर HORMONIC CHANGES आते हैं, पर इसी चीज को यदि भारतीय लड़कों के अनुसार प्रभाषित करें “ यार इनके जब PERIODS होते हैं नए-नए शुरू तो इनको बहुत चुल्ल मचती है, तब इनको कोई चाहिए होता है...” और यह तब है जब उड़ीसा जैसे आदिवासी क्षेत्र में लड़कियों करे मासिक धर्म धारण करने पर उत्सव मनाया जाता है। असम के प्रसिद्ध शक्तिपीठ कामाख्या देवी में माँ की योनी रूप की पूजा की जाती है। तो हमारे इस तथा-कथित आधुनिकीकरण का क्या महत्व ?अक्सर आज भी एक लड़की के चरित्र को दर्शाने के लिए आज भी अजीबो-ग़रीब तरीके इस्तेमाल में लाए जाते हैं, एक लड़की अगर देर रात बाहर रहती है तो क्यूँ उसके बारे में एक ही राय बना ली जाती है ? चाट-पापड़ी की दुकान पर यदि कोई लड़की चाट-मसाला मांग लेते है या तीखा पानी मांग लेते है तो क्यूँ हम एक ही बात सोचते हैं?
अगर किसी लड़की के नाखून बड़े हैं तो वो शरीफ़ है और यदि छोटे हैं तो वो ग़लत काम करती होगी, जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ (FEMALE MASTURBATION) की और यदि वो करती भी है तो इसमें दिक्कत क्या है ?मुझे नहीं पता हम किस संस्कृति या संस्कारों की दुहाई देते आ रहे हैं, पर अब यह भारत की विडंबना है की यहाँ एक लड़की का कोई भाई हो ना हो, पर कइयों के भाई की प्रीयतम् बन के कइयों की भाभी अवश्य बन जाती है और कुछ इनसे भी आगे होते हैं उनके लिए लड़कियाँ “सविता भाभी” या हस्तमैथुन (MASTURBATION) तक ही सीमित हो जाती है । ख़ास कर स्कूल से निकलने के बाद से शादी तक के बीच का समय भारतीय माता-पिता को सर्वाधिक चिंतित करता है, इस समय इन्हें “कमज़ोरी की कड़ी में” पूरी तरह बांध दिया जाता है और मान लिया जाता है कि इनसे कमज़ोर कोई भी नहीं है इस दुनिया में... तब किसी SUPER HERO की तरह इनकी सुरक्षा के लिए एक रोशनी की किरण बन कर आते हैं GIRLS’ HOSTEL जिनकी प्रबंधक अक्सर विधवा या तलाक़शुदा औरतें होती हैं इसके पीछे का कारण क्या है मुझे आज तक समझ नहीं आया?
इन GIRLS’ HOSTEL के नियमों से हम सब बखिफ़ है पर मेरा प्रश्न भारत के मानवाधिकार से है जिनको इन छात्रों की स्थिति पर क्यूँ तरस नहीं आता? जो भारत में कासाब और अफ़जल जैसे आतंकवादियों के मानवाधिकार पर तो बोलता है पर क्यूँ इन छात्रों के हालात पर मनमोहन सिंह हो जाता है ?इसी उम्र के पड़ाव में इन लड़कियों को इश्क़, मोहब्बत, प्रेम होता है जो भारत की जाट बिरादरी के लिए खून करने से कम अपराध नहीं है जिस कारण अक्सर जोड़ों शव पेड़ पर लटके पाए जाते हैं, जिन्हें BOLLYWOOD रामलीला, इश्कजादे बना कर श्रध्दांजली देता है। जो “शरीफ़ घर की लड़कियों ” छात्रावास के नियमों का पालन करते करते जीवन निर्वाह करती है शादी तक virgin रहती है अक्सर भारतीय लड़कों की पहली पसंद होतीं है, माँ-बाप उनके लिए एक अच्छा लड़का देख कर उनकी शादी करवा देते हैं। भारतीय शादियों के कुछ पहलू जिस कारण लगता है पूरा भारत एक है :
१. लड़की कुवारी (VIRGIN) होनी चाहिए शादी में दहेज़ से पहले प्राथमिकता इस पर अक्सर होती है जिसे शादी के बाद सफ़ेद चादर के लाल होने के जरिए जाना जाता है और कभी कभी इससे अजीब तरीके भी इस्तेमाल में लाए जाते है।
२. लड़की अपने प्राणनाथ पति परमेश्वर का हर कहना माने चाहे पति शादी के समय दिए वचनों को कभी आचरण में ना भी लाए तब भी वो परमेश्वर तुल्य है शायद इसी कारण भारत में महिलाओं को स्त्री के संस्कारों की दुहाई देने वालों के लिए DOMESTIC VOILENCE ( घरेलू हिंसा ) और MARITIAL RAPE ( वैवाहिक बलात्कार ) जैसे शब्द अस्तित्व में ही नहीं होते। अपने बेटे के लिए लड़की तो चाहिए पर अपने घर में यदि लड़की पैदा हो तो सांप क्यों लोट जाता है?
क्यूँ अक्सर देखा जाता है लोग पांच-पांच बच्चे कर देते है क्योंकि उनके यहाँ पहले चार बच्चे लड़कियाँ थी ।महिलाओं की कमज़ोरी दर्शाने के लिए कुछ शब्दावली भी हैं जो अक्सर महिलाओं की ताजपोशी करने में लाई जाती है उनमें से सबसे उच्चतम उपाधि है रंडी (PROSTITUTE) शब्द।
जो औरतें किसी मजबूरी में आकर अपना जिस्म बेचती हैं उनके लिए नहीं, अक्सर वो औरतें जो समाज की कुरीतियों का विरोध करती हैं उनके लिए यह ज्यादा इस्तेमाल में लाया जाता है फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम। अरे, समाज तो छोड़िए अक्सर खुद को अपनी प्रियतम् का प्रियबर बताने वाला वो तथाकथित प्रेमी भी अपनी प्रेमिका द्वारा अपनी शारीरिक और मानसिक जरूरत पुरी ना होने पर उसे भी जब चार दोस्तों के बीच में रंडी कहता है तब वो क्यूँ भूल जाता है कि कोई लड़की उसे भी राखी बाँधती होगी। जब भी मैं इस शब्द को सुनता हूँ तो मुझे लगता है VIRGIN के अलावा इस शब्द पर भी
भारत एक है। हमारा समाज तो वैसे भी इनको कमज़ोर मानता ही है तभी हम बस में अक्सर खूबसूरत लड़कियों को देख कर अपनी सीट छोड़ने को आतुर होते हैं जबकि उसी बस में अक्सर गर्भवती महिलाएँ खड़े हो कर सफ़र किया करती हैं। आज कल बहुत से बैंकों में जब आप खाता खोलते हैं तो पिता जी के नाम की जगह माँ का नाम पूछा जाता है तो शायद से हम में से बहुत को लगता होगा कि देश बदल रहा है पर सच्चाई कुछ ओर है क्योंकि विदेशों में तलाक़ का चलन बहुत अधिक है, एक साल में लोगों को दो से तीन पिता जी भी देखने को मिल जातें हैं और जिस तरह भारतीय बेवकूफों की तरह विदेशियों की राह पर चलते हैं यह बहुत जल्दी भारत में भी देखने को मिल सकता है तो बहुत अच्छा है कि भारतीयों को भी इस व्यवस्था से महिला सशक्तिकरण के नाम पर ही अवगत करवाया जाए।
ऐसा ही कुछ महिला आरक्षण के नाम पर भी किया जाता है जब किसी राजनीतिक पार्टी को लगता है कि किसी क्षेत्र में उसकी पार्टी का पुरुष नेता नहीं जीत सकता तो फिर महिला सशक्तिकरण का ट्रम्प कार्ड खेला जाता है, वोट बैंक के लिए महिला तुष्टिकरण को महिला सशक्तिकरण बनाया जाता है और हमें लगता है देश बदल रहा है। कमज़ोरी और नहीं, कमज़ोरी तो है कहीं ना कहीं हमारी विचार शक्ति में, हमारे आचरण में और इसी के चलते आज पूरा समाज धृतराष्ट्र बन चुका है। यह भारतीय समाज की सच्चाई है और इस सच्चाई को सहन करते हुए भी पर्वत मेरु के समान अडिग खड़ी होती हैं भारतीय महिलाएँ को कौन कह सकता है कि “भारतीय महिलाएँ कमज़ोर हैं”, पर सदियों से इनके साथ यह सब कुछ होता चला आ रहा है क्योंकि आज भी हम मानते हैं कि “ भारतीय महिलाएँ कमजोर हैं ”।
मन की बात :
मैं कोई लड़की नहीं हूँ और न मैं आपकी समस्याओं को समझ सकता हूँ इस लेख में साँझा की गए विचारों को अवश्य मैंने शब्दों का आकार दिया गया है पर मुझ तक यह शब्द आप ही ने मेरी माँ, बहन, प्रेमिका और मित्र बन कर पहुंचाएं हैं और यदि कुछ छूटा हो तो सुझाव का विकल्प हमेशा खुला है। यह लेख लिखने का उद्देश्य किसी का विरोध करना नहीं अपितु विद्रोह से अवगत करवाना है, विद्रोह कुरीतियों के खिलाफ़, विद्रोह उनके भी खिलाफ़ जो अक्सर जन्तर-मंतर पे खड़े हो के चीख़ते रहते है महिला-पुरुष सामान है पता नहीं क्यूँ उनको इतनी सी बात समझ नहीं आती कि प्रकृति ने कुछ सोच-समझ ही शिव-सती का, आदम-ईव को संरचना दी होगी ? क्यूँ हम एक स्त्री को एक इंसान नहीं मानते ? हम मानते भी हैं तो महज देवी जोकि केवल त्योहारों के दिन ही याद आती है और जिस दिन कोई पुरुष हो जाए नास्तिक तो भाड़ में जाए देवी फिर तो वो इंसान तुल्य भी नही रहती और फिर होता है केवल और केवल शोषण !! यह तो शुरुआत है, अभी तो पूरा रास्ता तय करना है “विरोध से विद्रोह” तक ।
Well you really explained it well may this society change in the future.
ReplyDeleteThanks for support brother
DeleteRightly said ✔️
ReplyDeleteWelcome & thnkst for support
DeleteIt shows unknown so do reveal urself.
Hopefully will reach to masses!!!!!
ReplyDeleteShare as much as u can
DeleteWell said 👏👏👏
ReplyDelete😊😊
ReplyDeleteसाफ़ शब्दों में सीधी बात! बोहत उम्दा।
ReplyDeleteShukriya
ReplyDelete“विरोध से विद्रोह” !!
ReplyDeleteNice..👌👌
Unfortunately now the term "Feminism" has been tarnished because of some Pseudo Feminists.
Thanks ☺️
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