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प्रेम: सेक्स और प्रभुत्व के अलावा क्या?




Disclaimer: 

14 Feb नजदीक है तो सोचा जिन्होंने मुझसे प्रेम करने का अधिकार छीना उनकी थोड़ी खटिया खड़ी की जाए।मित्रों याद रहे: यदि लेख पसंद आए तो इतना शेयर करिए, इतना शेयर करिए कि वाद, विवाद, और वायरल सब हो जाए। वैसे तो चौथा ब भी है पर वह व नहीं ब है: बकैती, जो मुझे नहीं पर आपको मेरे लेखों पर कमेंट करके करनी होती है जो आप नहीं करते हैं, इससे मेरा दिल बड़ा आहत है।

तो मेरे गहन चिंतन की शुरुआत मैं ओशो को कोट करके करूंगा कि "Every love affair is a failure, without exception" यानि हर प्रेम संबंध बिना अपवाद के असफल ही होता है। और यदि मैं इसको अपनी भाषा में थोड़ा अलंकृत कर के बोलूं तो कह सकता हूं कि जब प्रेम का मक्खन छोलोगे तो सबके हिस्से केवल छाछ आएगी कुछ विरले ही लोग होंगे जिनको मक्खन का स्वाद चखने को मिलेगा।

मैंने भी कोशिश की इस मक्खन को चखने की पर मुझे लगता है कि नसीब में मेरे भी छाछ ही आई है। कारण कुछ भी रहे हो, कि कामुकता की मधानी से मक्खन छोला या मलाई रूपी प्रेम जो सब की मलाई की तरह पुराना बासी था पर परिणामरूप में तो केवल कड़वा घूंट लस्सी का ही मिला है । पर यदि आप में थोड़ी बहुत चेतना हो तो आप समझेंगे, थोड़ा ठहरेंगे, विचार करेंगे और फिर ध्यान पूर्वक इस प्रेम की मलाई को मथने की कोशिश करेंगे। मैं आपको इस प्रक्रिया के आगे का क्या होगा उसके बारे में तो नहीं बता सकता क्योंकि मैं उसके बारे में नहीं जानता, पर आपसे इस प्रक्रिया के दौरान हुए घटनाक्रम को, महसूस किए गए विचारों को सांझा करूंगा।

आजकल इंस्टाग्राम रील, टिक टॉक पर इतना प्रेम बरसता है, ओहो! आहा ! मिलन की ख़ुशी और अगली ही पोस्ट पर बिछड़ने का ग़म ऐसा अद्भुत संगम के लिए मुझे लगता है कहीं देवता भी अवतार ना ले लें। और इनमें से अधिकतर ऐसे हैं जिनको 2 से 20 तक के पहाड़े न आता हों, पर आता है तो केवल और केवल प्रेम करना। मतलब, वेद पढ़ने के लिए कम से कम भी 8-10 विषय आनी चाहिए, और तो और कामसूत्र में सेक्स करने के लिए भी 8-10 कलाओं को आने की बात की गई है। और इनको यौवन के चार छींटे क्या मिले, कि सब प्रेमी हो गए और हम सब भी यही ग़लती करते हैं। क्यूंकि हमने अपने आस पास फिल्मों में, किताबों में यही देखा: एक लड़की, एक लड़का, और खूब सारा सेक्स।

पर फिर उठेगा मूलभूत प्रश्न: प्रेम क्या है?

मैंने जो जाना, वह तो यही है कि आपका किसी के प्रति आत्मीयता है, जो औदार्यता है, जो करुणा है, जो वात्सल्य है उसका शीर्ष, मेरु पर्वत ही प्रेम है। और वह किसी के लिए भी हो सकता है। मित्र, पत्नी, धरा, आकाश, पेड़, फूल, पौधे, समस्त प्रकृति, समस्त ब्रह्माण्ड में रमण, विचरण करने वाली कोई भी वस्तु हो सकती है। पर क्या हमने कभी इतने विशाल प्रेम की परिकल्पना भी की? पर हमने तो गणित में इंटीग्रेशन के भांति सदा प्रेम को लिमिट में ही रखा, और जब वह लिमिट टूटी तब टूटे हमारे ख्याली कांच के आशियाने जिनमें हमने हमारे प्रेम और प्रेमी दोनों को बंद किया था सदियों से या सरल शब्दों में कहे जब हमें अपने साथी से सेक्स नहीं मिलता तब भी हम उसे छोड़ देते हैं और जब मिल जाता है तब भी क्योंकि हमें तलाश तो प्रेम की होती है पर हम समझौते शारीरिक संबंधों से कर बैठे होते हैं।

कभी आप वर्तमान स्थिति में अपनी किसी महिला मित्र को कह सकते हैं कि आप उससे प्रेम करते हैं, और इधर केवल प्रेम का मतलब प्रेम है, बिना किसी शारीरिक संबंध के बिना किसी स्वार्थ के शुद्ध सात्विक प्रेम; तो इस स्थिति में आपके यही होगा कि आपके प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया जाएगा और साथ ही साथ मर्दाना कमजोरी का इलाज करवाने की नसीहत भी अलग मिलेगी। और फिर एक नई कहावत का जन्म होगा: बनने चले थे प्रेम पुजारी अब इलाज करवा रहे सरकारी।

और यही हमारे समाज की कड़वी सच्चाई है कि हम इंसानियत पर बड़े-बड़े भाषण तो दे देते हैं, पर हम लोगों को प्रेम करना नहीं सीखा पाते हैं और न ऐसा माहौल दे पाते हैं कि लोग शुद्ध सात्विक प्रेम एक दूसरे से कर पाएं । इसलिए आशा है कि आप अपनी संकुचित सोच का दायरा थोड़ा बढ़ाएंगे और उन लोगों के प्रेम को भी स्वीकार करेंगे, जो आपसे आपके शरीर से बढ़कर आपके अंदर जो चेतना है, उसे प्रेम करना चाहते हैं; और आयुर्वेदिक दवाई की तरह इसका कोई नुकसान भी नहीं है । क्योंकि वह आपको न मानसिक, न शारीरिक, न बौद्धिक, किसी भी तरह की कोई भी प्रताड़ना नहीं देंगे क्योंकि इनका संबन्ध तो शरीर के साथ सीमित है, और वह तो आपकी चेतना की बात करते हैं तो अवश्य वह आपको कुछ देंगे और वह होगा आपका आध्यात्मिक विकास।


~ कार्तिक

Comments

  1. Replies
    1. बहुत सुंदर लेख लिखा इस बार भी कार्तिक जी आपने ।

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