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Showing posts from 2018

मुक्ति बंधन

(श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद पर रचित) श्री कृष्ण अर्जुन से: रुकना झुकना तेरा काम नहीं, तू पथिक तुझ से पथ, पथ से तेरा नाम नहीं, हाथों में लिए अभिलाषादीप निरंतर प्रगति करता, डरता न बुराई से बस दामन दमन से तू डरता, चाहे स्वेद की धार बहे, चाहे रक्त की बौछार बहे, मगर पीछे न हट, कर आत्म संकल्प न छोड़ेगा तू यह हठ, जीवन की गगरी में चाहे जीवन हो दो बूंद क्या है ? भीतर तेरे सागर बसता यह दो बूंद दो बूंद क्या है ? तीन पग में माप ले तू सारी धरातल, नीलकंठ भांति पी जा कालकूट से भरा हलाहल, कर्तव्य के गांडीव से जो विपदा बाण चलें हैं, हिमालय की शीतलता, अग्नि के तेज को सहते-सहते सदा वीर चले हैं, नियति ने प्रशस्त किया है मार्ग पर अग्रसर होना है, यही हल था धनंजय यही हल होना है।। अर्जुन श्रीकृष्ण से: आंख में अश्रु, मुख पर मौन लिए खड़ा है अर्जुन, बंध मोह पाश में हार पड़ा है अर्जुन, श्री कृष्ण अर्जुन से : भूल गया तू पौत्र भीष्म का, जिसकी प्रतिज्ञा न जग में दूजी तुझमें गौत्र उस भीष्म का, सामने शकुनि दुर्योधन या हो सूत पुत्र, न हार मान रे पांडु पुत्र, कर्म कर फल से तेरा काम नहीं, र...

भारतीय महिलाएं कमज़ोर हैं !!

अक्सर बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों पर बढ़े-बढ़े पोस्टरों पर नामर्दी, स्वप्न दोष, और SEX POWER बढ़ाने वाले पोस्टर दिखते हैं, यदि महिलाएँ इतनी ही कमज़ोर हैं तो क्यूँ इन दवाइयों की जरूरत हमेशा पुरुषों को ही पड़ती है?  क्यूँ खून की मात्रा का अंतर महिलाओं में १२ और पुरुषों में १४ का होता है? हम में से कितने हैं जो बाएँ हाथ से लिख सकते हैं, जब हम बचपन में कक्षा में किसी को लिखते देखते थे तो पता नहीं क्यूँ हम उसको अपने से अलग मान लेते थे और इसी चीज़ की दूरदर्शी  सोच का असर भारतीय माता-पिता में दिखता है जो मार-मार के ही सही अपने बच्चों को दाएँ हाथ लिखना सिखा ही देते हैं, इसी कारण आज भी १०० में से मात्र १० बच्चे ही बाएँ हाथ के मिलते हैं परन्तु जो गोर करने वाली बात यह है कि इनमें महिलाएँ मात्र नाम की भी नहीं हैं क्योंकि भारतीय परंपराओं के अनुसार शुभ काम हमेशा दाएँ हाथ से किया जाता है, “और कल को लड़की ससुराल जाएगी तो लोग क्या कहेंगे ?” इसी एक प्रश्न ने मुझे लगता है लड़कियों की आज़ादी को छीन ने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जब यह लड़कियाँ १०-१२ साल की उम्र में होती है जिसे हम भार...

The Keys of Happiness

It's not what you look at that matters, it's what you see- Henry David Thoreau “Acceptance” and “Let It Be” are the two keys of internal eternal joy which I have learned from the experiences through meditation. Meditation is not about understanding yourself, it is about feeling yourself, because when you feel yourself you shall enjoy each and every moment created by Astitva. Whether you are going through pain, or something hurting you, or you have a disease you will enjoy the pain, the hurt, the disease. At that time, you shall realize you are connected to the universe and you are the part of the universe & whatsoever is happening is just to make you realize who you are and why you are here.

विरोध से विद्रोह तक :

यदि आप किसी रास्ते से अकेले गुजर रहे हों और शौचालय की कोई व्यवस्था न हो और आपको पेशाब आ जाये तो आप क्या करोगे पेशाब या स्वच्छ भारत? यह बात हमें समझनी पड़ेगी, आज भारत में विरोध का एक सा ही स्वर सुनता हैं, पुरुष है तो उस पर लाठी, जूते, चप्पल का प्रयोग करो और यदि औरत है तो उसकी रंडी शब्द से ताजपोशी कर दो। क्या हमारी बौद्धिकता केवल यहाँ तक ही सीमित रह गयी है? क्यूँ विरोध विचारिक आधार पर नहीं होता? क्यूँ हम सत्य के लिए विद्रोह नहीं करते? विरोध और विद्रोह हमें शायद एक ही लगें पर दोनों के बीच का अंतर सूर्य-चंद्रमा का है, कहीं न कहीं एक दुसरे के दोनों पूरक हैं, विद्रोह सूर्य की तरह सम्पूर्ण और विरोध चंद्रमा की तरह विद्रोह के सूर्य के बिना अधूरा। दोनों में मूल अंतर केवल इतना ही है कि विरोध सत्य-असत्य को देख कर नहीं किया जाता, वो बस किया जाता है और कभी भी, बिना किसी आधार के भी, परन्तु विद्रोह का आधार हमेशा सत्य हुआ करता है। सत्य, जिसकी तुलना शिव से की गई, जो शिवतत्त्व की तरह अनूठा हो, जो शिव के नेत्र की तरह किसी पर दयाभाव से पड़ जायें तो वरदान, वहीं तीसरा नेत्र ...