Disclaimer: ऐसा समय कब आएगा जब मुझे डिस्क्लेमर की जरूरत नहीं पड़ेगी, किंतु डिस्क्लेमर मुझे लगता है कि मेरे लेख की भूमिका के लिए नींव का काम करता है। तो जनहित जारी याचिका यह है कि न मैं मातृत्व का विरोधी हूं, न मैं चाहता हूं कि आप संतान सुख से वंचित रहें, पर हमेशा की तरह मैं समाज के मूलभूत मूर्खतापूर्ण ढांचों पर कटाक्ष और प्रहार करूंगा जो यह समाज अक्सर सह नहीं पाता।
पहाड़ों पर बर्फ गिर रही है, सर्दियां अपने चरम पर है, शून्य से नीचे पारा उच्च पहाड़ी क्षेत्रों पर आम बात है; पर कुछ ऐसा भी है जो ढका हुआ है अज्ञानता की बर्फ के नीचे, और मनुष्य की पर्वत नुमा इच्छाओं के ऊपर या उन दोनों के बीच जैसे में कहीं। अब जैसे ही दिसंबर का मौसम आता है, हम यह खबरें सुनते हैं कि किसी न किसी गर्भवती महिला को बर्फ के बीच गांव के साहसी जवान और कुछ जगह सेना के जवान उनके गांव से लेकर उनको अस्पताल तक पहुंचाते हैं, जैसे पहुंचाया था हनुमान ने राम लक्ष्मण को अपने कंधों पर बिठाकर ऋषिमुख पर्वत पर।जब हम यह खबर सुनते हैं तो हमको हमारे इन युवा जवानों और सैनिकों के इस औदार्यपूर्ण व्यवहार पर निसंदेह गर्व होता है और होना भी चाहिए ।
पर यह तो सिक्के का एक ऐसा पहलू है जो हमारे सबके बीच आता है, एक पहलू अब भी गायब है और वह यह है कि यह कौन मूर्ख लोग हैं जिनको अपने बच्चे सिर्फ दिसंबर, जनवरी और फरवरी में ही पैदा करने हैं। यह तीन मास ऐसे होते हैं जब शीत लहर अपने चरम पर होती है, 5-6 फीट बर्फ पहाड़ों पर आम बात है जिस कारण बहुत से गांव कट जाते हैं दुनिया से, यदि इन लोगों के पास इतना ज्ञान है कि यह उस दौरान अपने लिए तीन-चार महीनों का राशन, दवाई और अन्य ज़रूरी चीजें सहेज कर रख सकते हैं तो इनके पास परिवार नियोजन का ज्ञान भी होना ही चाहिए।
क्यों इनको कोई यह नहीं बताता कि इनकी मूर्खता के कारण यदि रास्ते में मां और बच्चे की मृत्यु हो जाए प्रसव पीड़ा के कारण तो कौन जिम्मेदार होगा? सरकार, अस्पताल, सेना, या यह लोग जो बिल्कुल भी इस बात की परवाह नहीं करते कि इनको बच्चा चाहिए भी या नहीं, या भेड़ चाल में कि दुनिया कर रही है तो हम भी कर लेते हैं और यही सबसे बड़ी विक्षमता है। करोना काल में भारत में दो करोड़ बच्चों का जन्म इस बात को स्वत: ही दर्शाता है कि हम में परिवार नियोजन का ज्ञान कितना है। २०१८ की द हिंदू में छपी इकनोमिक सर्वे रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में लगभग लगभग दो से ढाई करोड़ लड़कियां इसलिए पैदा की गई क्योंकि मां-बाप को बच्चे के रूप में लड़का चाहिए था। अब वह समय आ चुका है जब इस प्रकार यदि मूर्खता बढ़ती रही तो हम बर्बादी की कगार पर नहीं बर्बादी के शिखर पर पहुंचेंगे।
तरीके बहुत हैं, हम जानते भी हैं बस इतनी प्रार्थना करूंगा उन पर खुल कर बात करें और प्रयोग में अवश्य लाएं।
~ कार्तिक
Beautifully captured in words.. the real phase 👍👍
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