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Showing posts from June, 2020

श्याम

देख चित्र तुम्हारा मोहन राधा नैन मेघ श्याम छाए ।। होवे बरखा रिमझिम रिमझिम, भीगी ना राधा भीगा श्याम जाए ।। भोर भई लूं मन अपना जग से जोड़, क्या करूं उस क्षण रे कान्हा, जब शाम हो रंजित श्याम आए।। विरह छाए घनघोर घने नृत्य करे अश्रुमोर, जो रूठी राधा रणछोड़ से, फिर राधा मनाने श्याम आए ।। देखा स्वप्न सहसा बंध रही बंधन की डोर, सुलादो सैकड़ों सदियां, टूट स्वप्न न श्याम जाए ।। तेरा जाना सांवरे मन निधिवन गया उजाड़, खिले पुष्प अब तब ही, जब भंवरा श्याम आए ।। तुझे ढूंढने को घूम दिए मंदिर कंदरा पहाड़, जो खोजा आप में, दर्श देने को श्याम आए ।।

सामाजिक समरसता: भाषण नहीं भंडारा

Disclaimer: जो कोई भी आपसे यह कहता है कि वह आपको किसी समूह में जोड़ कर, किसी पार्टी में जोड़कर या किसी तथाकथित आंदोलन में जोड़कर समाज से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव को समाप्त कर देगा तो व्यक्ति आपको केवल और केवल अपने हितों को आप के जरिए साध रहा है । समाज में भेदभाव मिटाना और समरसता लाने के लिए किसी भाषण की, किसी नेता की कोई जरूरत नहीं है जरूरत है सिर्फ और सिर्फ भंडारों की और आपकी उसमें सहभागिता की । हाल ही में हमने निर्जला एकादशी का त्यौहार मनाया या जिसे हम बचपन से ही छबील वाला दिन मनाते आ रहे हैं, CORONA संकट की इस घड़ी में सब बन्द था पर यदि नहीं होता तो आपको देखने को मिलती पानी की छबीलें और कुछ जगह पर लंगर और भंडारे भी । पर बतौर समाज हमें इन छबीलों, लंगरों और भंडारों आवश्यकता सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि इससे केवल किसी भूखे प्यासे का पेट भरेगा। यह छबीलें, लंगर और भंडारे समाजिक संरचना को मजबूत करने और आपस के भेद मिटाने में बहुत सहायक होते हैं। ऐसी मान्यता है यदि आपको अपने परिवार को इक्कठा रखना है तो उन्हें साथ में भोजन करने की आदत डालें और यदि आपको समाज को संगठित करना...