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Showing posts from June, 2019

द्रौपदी

मौन की तपस्या सुन रही, क्यूं द्रौपदी साड़ी से फंदा बुन रही, पायल जो कभी हर्षगीत सुनाती, पांव को पटकती तू अब पाजेब तेरी पीड़ा गाती, पायल जब थिरकती तो कभी रुनझुन रुनझुन होती, बंधन बन बंधती सिसक-सिसक तू रोती, खनकते कंगन जो कलाइयों पर जब पिया हंसते थे और रूठते, पर अब उन्हीं कलाइयों पर खटकते और टूटते, जिस जीवन से जीवन जन्मता उस जीवन को अब जीवन की जरूरत, कभी तो मेहंदी का रंग था अब रक्तरंजित सुहाग मूर्त, ममता करुणा वात्सल्य पर अब क्यूं मौत मंडराती, पुण्य तेज क्षीण हुआ पाप पुण्य पिघलाती, जब स्वयं हर दांव में हार गए हैं पांडव, तो कौन करे रक्षा तुम्हारी? हे माधव !! अब आस तोसे ही अब लाज बचा लो बलिहारी !!

प्रियतम्

अरुणिमा तेज नहीं मुख पर ,  न आँखों के साहिल पर काजल की माया , फिर भी ऐसा क्या है तुझमें प्रियतम जो मेरे मन को भाया ? भायी मुझे तेरे स्नेह तरूवर की अनुहार , वो मधुयुक्त मधुशब्दों की मृदु फुहार , वो चंचल मुस्कान अचंभित , वो शब्दघटा करती मुझको मुदित , कठपुतलियां पुतलियां बनती नैनों की , डूबता था मैं सांझ पर ही ,  दिखलाई छैल छबीली छवि रैनों की , वो व्याकुलता से संदेशों का इन्तज़ार , वो हंसना रूठना तेरा मेरे हृदय के भाव सागर में उठता लहरें अपार , स्वप्न और मृगतृष्णा की यह कैसी पहेली रच डाली , बुझी तो फिर भी मेरे मन ने यह व्यथा कह डाली , क्या तुम नगरी कोई स्वप्नों की ,  कोई मृगतृष्णा या कोई माया... ऐसा क्या है तुझमें प्रियतम जो मेरे मन को भाया  ?