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Showing posts from 2019

द्रौपदी

मौन की तपस्या सुन रही, क्यूं द्रौपदी साड़ी से फंदा बुन रही, पायल जो कभी हर्षगीत सुनाती, पांव को पटकती तू अब पाजेब तेरी पीड़ा गाती, पायल जब थिरकती तो कभी रुनझुन रुनझुन होती, बंधन बन बंधती सिसक-सिसक तू रोती, खनकते कंगन जो कलाइयों पर जब पिया हंसते थे और रूठते, पर अब उन्हीं कलाइयों पर खटकते और टूटते, जिस जीवन से जीवन जन्मता उस जीवन को अब जीवन की जरूरत, कभी तो मेहंदी का रंग था अब रक्तरंजित सुहाग मूर्त, ममता करुणा वात्सल्य पर अब क्यूं मौत मंडराती, पुण्य तेज क्षीण हुआ पाप पुण्य पिघलाती, जब स्वयं हर दांव में हार गए हैं पांडव, तो कौन करे रक्षा तुम्हारी? हे माधव !! अब आस तोसे ही अब लाज बचा लो बलिहारी !!

प्रियतम्

अरुणिमा तेज नहीं मुख पर ,  न आँखों के साहिल पर काजल की माया , फिर भी ऐसा क्या है तुझमें प्रियतम जो मेरे मन को भाया ? भायी मुझे तेरे स्नेह तरूवर की अनुहार , वो मधुयुक्त मधुशब्दों की मृदु फुहार , वो चंचल मुस्कान अचंभित , वो शब्दघटा करती मुझको मुदित , कठपुतलियां पुतलियां बनती नैनों की , डूबता था मैं सांझ पर ही ,  दिखलाई छैल छबीली छवि रैनों की , वो व्याकुलता से संदेशों का इन्तज़ार , वो हंसना रूठना तेरा मेरे हृदय के भाव सागर में उठता लहरें अपार , स्वप्न और मृगतृष्णा की यह कैसी पहेली रच डाली , बुझी तो फिर भी मेरे मन ने यह व्यथा कह डाली , क्या तुम नगरी कोई स्वप्नों की ,  कोई मृगतृष्णा या कोई माया... ऐसा क्या है तुझमें प्रियतम जो मेरे मन को भाया  ?

शीर्षक : भारत

शांत हुआ हूं, पर हुआ अब तक मौन नहीं || नव स्वर्णिम अरुणिमा से ले प्रकाश, ढांढस देता स्वयं को, बांधता नव चेतना की आस, प्रखर-शिखर पार कर, नौका को मझधार से तार कर, पहुंचना जीवन रथ, महाभारत की भूमि पर, दोहराना जीवन महाभारत, कुरुक्षेत्र की भूमि पर, आत्ममंथन से ज्ञात हुआ है मुझमें कौन नहीं, शांत हुआ हूं, पर हुआ अब तक मौन नहीं ||१|| बलिदान हो स्थूल सारा स्थल पर, जीतना है स्वयं को महाभारत के बल पर, जीवन रथ चाहे हो डगमग, लड़खड़ाए चाहे प्राण घटक के पग, सारथी बन थामता, जीवन सूत्र हूं जानता, समयधारा को जीवन धरा पे बांध, अडिग कर्तव्य पथ पर, मानो अंगद की जांघ, पर्वत मेरु के समान, दृष्टा अडिग चट्टान, चेतन स्वर की गूंज, आकाश पग नयन स्वप्न से चूम, नवनीत मंथन से ज्ञात हुआ है मुझमें कौन नहीं, शांत हुआ हूं, पर हुआ अब तक मौन नहीं ||२||

शीर्षक: गाऔं हुण गाऔं नी रहे !!

कहाणियां दा घर बूढ़ी अम्मा कन्ने ढई गया, ओ बदामी कज्जल, यादां दे फुहारे संग बही गया.. हुण भी क्या साएं-साएं बगदियाँ कुल्लाँ ? हुण भी क्या मिटियाँ दी जगदियाँ चुल्लाँ ? हुण भी क्या शामी जो, दाणयां दा लगदा भट्ठा ? हुण भी क्या कटोरी सागे दी जो नौंण सजदा ? हुण भी क्या मक्की घराटेयाँ च पिसदी होंगी ? हुण भी क्या रस्सियाँ कुएं जो घिसदी होंगी ? हुण भी क्या गोलगप्पेयाँ च पुदीने दा स्वाद होंगा ? हुण भी क्या कंडेराँ दा घर आवाद होंगा ? हुण भी क्या पहला निबाला गाय जो दिंदे होंगे ? हुण भी क्या मुसाफ़िर टयाले दी छाँव थल्ले सोंदे होंगे ? हुण भी क्या किंब खट्टा-मिट्ठा स्वाद दिंदे होंगे ? हुण भी क्या जबरे खडू नालू बोडियाँ जाई नोंदे होंगे ? हुण भी क्या बुजुर्ग हुक्का खिचदे ? हुण भी क्या तूत गरने बिकदे ? हुण भी क्या चौबरेआं ते ताशाँ दी महफ़िल लगदी ? हुण भी क्या सरौं दे सिंगारें ने धरती फबदी ? हुण भी क्या पीपल दियां ने सजदा ? हुण भी क्या खुशियाँ च ढोल-नगाड़ा बजदा ? हुण भी क्या दुलंणा दी पालकी सजदी ? हुण भी क्या दुलंणा कलिरेयाँ च फबदी ? हुण भी क्या कीचड़े ने ...