मौन की तपस्या सुन रही, क्यूं द्रौपदी साड़ी से फंदा बुन रही, पायल जो कभी हर्षगीत सुनाती, पांव को पटकती तू अब पाजेब तेरी पीड़ा गाती, पायल जब थिरकती तो कभी रुनझुन रुनझुन होती, बंधन बन बंधती सिसक-सिसक तू रोती, खनकते कंगन जो कलाइयों पर जब पिया हंसते थे और रूठते, पर अब उन्हीं कलाइयों पर खटकते और टूटते, जिस जीवन से जीवन जन्मता उस जीवन को अब जीवन की जरूरत, कभी तो मेहंदी का रंग था अब रक्तरंजित सुहाग मूर्त, ममता करुणा वात्सल्य पर अब क्यूं मौत मंडराती, पुण्य तेज क्षीण हुआ पाप पुण्य पिघलाती, जब स्वयं हर दांव में हार गए हैं पांडव, तो कौन करे रक्षा तुम्हारी? हे माधव !! अब आस तोसे ही अब लाज बचा लो बलिहारी !!
Endeavor your souls in the soulful Writings, Poetries and Inspirational words written by कार्तिक.